आप जब बैंक में FD करवाते है तो सबसे पहले उसके इंटरेस्ट रेट की जानकारी लेते जिससे आप अपने निवेश पर रिटर्न की गणना कर सके। अब वह पर RBI की गाइडलाइन्स के आधार पर बैंक आपको एक फिक्स इंटरेस्ट रिटर्न देता है, लेकिन शेयर मार्केट में ये रिटर्न सभी कंपनी के लिए अलग होते है जिसके लिएरिटर्न के लिए रिटर्न ऑन इक्विटी (ROE meaning in hindi) रेश्यो देखा जाता है।
अब ये ROE क्या होता है, इसका फार्मूला क्या है और कैसे एक निवेशक इससे अपेक्षित रिटर्न की गणना कर सकते है इस ब्लॉग में विस्तार में बताया गया है।
ROE Meaning in Stock Market in Hindi
जब भी आप किसी कंपनी के शेयर खरीदते है तो आपको उसकी इक्विटी (equity meaning in hindi), यानी की Ownership प्राप्त होती है। अब जैसे-जैसे कंपनी ग्रोथ करती है उसकी इक्विटी की वैल्यू भी बढ़ती है जिससे आप अपने निवेश पर रिटर्न कमा पाते है।
अब ₹1 की इक्विटी पर कंपनी कितना रिटर्न कमा पा रही है उसी Return on Equity कहते है।
सरल भाषा में ROE आपको ये जानकारी देता है कि आप जिस कंपनी में निवेश कर रहे है वह आपको कितना रिटर्न देने की क्षमता रखती है। जितना ज़्यादा कंपनी अपनी इक्विटी पर प्रॉफिट कमा पाएगी उतना ही रिटर्न कमाने का अवसर आपको भी मिलेगा।
एक तरह से ROE एक निवेशक को कंपनी के प्रमोटर कंपनी की परफॉरमेंस की जानकारी प्रदान करता है। ये वैल्यू परसेंटेज में होती है और इसकी मदद से काफी निवेशक कंपनी में निवेश करने का निर्णय लेते है।
तो अगर आप प्रश्न जैसे शेयर मार्केट से करोड़पति कैसे बने का उत्तर ढूंढ रहे है तो ज़रूरी है की उसके लिए कंपनी की ROE और दूसरे पैरामीटर की ओर देखे और उसके अनुसार निवेश करे।
आपको यहाँ बता दे कि शुरुआत में हमे Rate of Interest का उदाहरण लिया था लेकिन असल में ROE और Interest Rate में काफी अंतर है।
एक तरफ जहां Return on Equity ये जानकारी देता है कि शेयर मार्केट में किस तरह से कंपनी इन्वेस्टर के निवेश किये गए फण्ड का उपयोग कर रही है, दूसरी तरफ Rate of Interest से एक निवेशक ये जान सकता है कि एक निवेशक किसी भी असेट में निवेश करने पर कितना मुनाफा कमा सकते है।
ROE Formula in Hindi
ROE की गणना करने के लिए एक निवेशक के लिए ज़रूरी है कि वह कंपनी की नेट इनकम और शेयरहोल्डर इक्विटी की जानकारी प्राप्त करे।
नेट इनकम कंपनी की वह इनकम है जो कंपनी के सभी तरह के खर्चे, इंटरेस्ट और टैक्स देने के बाद बच जाती है, दूसरी तरफ शेयरहोल्डर इक्विटी बिज़नेस की नेट वर्थ (networth) की जानकारी देता है। इसका तातपर्य है की एक कंपनी ने अपने बिज़नेस में कितना इन्वेस्ट किया हुआ है।
इसकी जानकारी आप आसानी से बैलेंस शीट (balance sheet in hindi) से प्राप्त कर सकते है जिसमे शेयरहोल्डर इक्विटी तीन भागो में बाटी गयी है: कॉमन स्टॉक, प्रीफरेंस स्टॉक्स (preference share meaning in hindi), और रेटेनेड अर्निंग।
ROE की गणना के लिए हमें बैलेंस शीट फार्मूला का इस्तेमाल करना होता है जिसमे नेट इनकम (Profit after Tax) में टोटल इक्विटी से भाग देने की जरुरत होती है।
ROE Formula = (नेट इनकम / टोटल इक्विटी) * 100
यहाँ पर ये जानना ज़रूरी है की ये एक एवरेज वैल्यू की जानकारी देता है क्योंकि हर एक शेयरधारक के पास अलग इक्विटी की हिस्सेदारी होती है। लेकिन फिर भी निवेश करने से मिलने वाले रिटर्न को जांचने के लिए ROE काफी आसान टूल है।
इंडस्ट्री में कंपनी की ROE से तुलना करने पर हमें कंपनी के सही तरीके से आकलन करने में मदद कर सकते है। इससे हमें यह भी पता चलता है की कंपनी मैनेजमेंट कैसे इक्विटी से फाइनेंसिंग करके अपने व्यापर को बढ़ा रही है।
किसी कंपनी के ROE बढ़ने से हमें यह पता चलता है की कंपनी अपने शेयरधारक वैल्यू की बढ़ा रही है और इससे यह जानकारी मिलती है की कंपनी अपने लाभ बढ़ाने के लिए अपनी संपत्ति अच्छे से उपयोग कर रही है।
अब क्योंकि इसकी गणना प्रतिशत में होती है इसलिए ये वैल्यू हमेशा पॉजिटिव होती है।
ROE Meaning in Hindi with Example
ROE meaning in hindi को थोड़ा विस्तार में समझने के लिए एक उदाहरण लेते है। मान लेते है कि एक ही सेक्टर की दो कंपनी है कंपनी A जो ₹5 की इक्विटी पर ₹1 कमाती है और दूसरी और कंपनी B जो ₹10 की इक्विटी पर ₹4 कमाती है।
अब इन दोनों कम्पनीज में से आप किस कंपनी में निवेश करेंगे?
उसके लिए इसके ROE की गणना करते है।
कंपनी A
नेट इनकम = ₹1
इक्विटी = ₹5
ROE= (1/5) * 100
= 20%
कंपनी B
नेट इनकम = ₹4
इक्विटी = ₹10
ROE= (4/10) * 100
= 40%
इसका मतलब Company A 100 रुपये की इक्विटी पर ₹20 का मुनाफा कमा रही है वही Company B ₹40 कमा रही है, जिससे Company B के बेहतर मैनेजमेंट के प्रदर्शन और आने वाले समय में बेहतर Growth की जानकारी मिलती है।
इसके आधार पर Company B में निवेश करना ज़्यादा फायदेमंद रहेगा।
कंपनी का ROE कितना होना चाहिए?
जैसा की कंपनी की वित्तीय स्थिति को मापने के लिए ROE को बेहतर वित्तीय उपकरण माना जाता है। लेकिन ROE की क्या वैल्यू सही मानी जाती है, ये एक ऐसा सवाल है जो एक निवेशक जानने के लिए इच्छुक रहता है।
ऐसा माना जाता है की ROE की वैल्यू अगर 25% हो तो उस कंपनी में निवेश कर आप अच्छा रिटर्न प्राप्त कर सकते है और ज़्यादातर, 15% से ऊपर का ROE कंपनी का एक अच्छा प्रदर्शन देता है।
लेकिन क्या ज़्यादा ROE हमेशा बेहतरीन परिणाम देता है, या कम ROE वैल्यू कंपनी में निवेश न देने का संकेत है?
खैर ऐसा हो सकता है लेकिन हर बार नहीं। कई बार अगर कंपनी में निवेश कर रहे हो तो कंपनी के लम्बे समय के ROE की जानकारी प्राप्त करे और एक सही विशेलषण कर उसमे निवेश करें।
उदाहरण के लिए मान लेते है कि किसी कंपनी को किसी एक साल में ज़्यादा मुनाफा हुआ लेकिन उसने कमाई हुए रकम किसी नयी मशीन या ग्रोथ के लिए इन्वेस्ट की, तो यहाँ पर कुछ समय के लिए या एक तिमाही रिपोर्ट ROE की वैल्यू कम हो सकती है।
ROE की वैल्यू दो वजह से बढ़ सकती है और एक निवेशक को गलत जानकारी प्रदान कर सकता है, जैसे की:
- अगर शेयरहोल्डर इक्विटी कम हो तो उससे ROE वैल्यू ज़्यादा होगी
- दूसरी तरफ अगर कंपनी ने किसी तरह का क़र्ज़ लिया है तो उससे उस कंपनी की नेट इनकम बढ़ जाएगी जिसका असर ROE की वैल्यू में देखने को मिलेगा।
लेकिन इन दोनों स्थितियों में ROE की वैल्यू बनावटी होती और एक निवेशक को बहका सकती है और एक गलत निर्णय की ओर ले जा सकती है।
इसलिए एक निवेशक को मौलिक विश्लेषण करते समय ये समय और कंपनी के मुनाफे के साथ-साथ खर्चो की भी पूरी जानकारी प्राप्त कर, किसी निर्णय पर पहुंचना चाहिए।
ROE के फायदे
हालांकि ROE की सही गणना बहुत सारे पहलूओं पर निर्भर करती है लेकिन एक निवेशक के लिए ये काफी जानकारियां लेकर आता है, जैसे कि:
- विकास दर (Growth Rate) का आकलन – Return on Equity का उपयोग कंपनी के विकास दर पता करने के लिए कर सकते हैं। इस अनुपात से आप कंपनी के स्टॉक और डिविडेंड के ग्रोथ का पता कर सकते हैं।
- कंपनी के विकास की स्थिरता का आकलन – ROE के उपयोग से कंपनी के ग्रोथ की स्थिरता को मापने में मदद करता है खासकर उस मामले में जब आप किसी स्टॉक का चुनाव कर लेते हैं जो मार्केट की अस्थिरता में नुकसानदायक होता है। ROE से आपको कंपनी की वास्तविक स्थिति की सही जानकारी मिलती है। पिछले कुछ वर्षों के ROE की जांच से आप अनुमान लगा सकते हैं की कंपनी की स्थिति क्या है।
- प्रतिद्वंदी कंपनी के ROE द्वारा तुलना – ROE के उपयोग से आप कंपनी के वित्तीय स्थिति की जानकारी से आप उस छेत्र के अन्य कंपनी की तुलना कर आप कंपनी के वैल्यू का अनुमान लगा सकते हैं।
निष्कर्ष
किसी कंपनी के शेयर में निवेश करने से पहले ROE की जाँच करना महत्वपूर्ण होता है। पिछले कुछ वर्षों के ROE देखकर आप कंपनी के प्रदर्शन का पता चलता है। रिटर्न ऑन इक्विटी बहुत महत्वपूर्ण वित्तीय अनुपात है आपको नकारात्मक ROE में नहीं निवेश करना चाहिए।
ROE की वैल्यू ज्यादा से ज्यादा होनी चाहिए जिससे कंपनी के निवेशकों के लिए ज्यादा फायदेमंद होती है।
और एक अच्छे ROE से कंपनी की मैनेजमेंट के बेहतर होने का भी पता चलता है। अब ROE के साथ कंपनी की वित्तीय स्थिति को जानने के लिए और भी उपकरण होते है जिसकी पूरी जानकारी आपको मौलिक विश्लेषण (Fundamental Analysis in Hindi) में मिलती है।
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