Derivatives Meaning in Hindi

derivatives meaning in hindi

भारत में डेरिवेटिव बाजार, विदेशों में डेरिवेटिव बाजार की तरह, तेजी से बढ़ रहा है। जब से वर्ष 2000 में डेरिवेटिव पेश किए गए थे, उनकी लोकप्रियता कई गुना बढ़ गई है। यह इस तथ्य से देखा जा सकता है कि नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में डेरिवेटिव सेगमेंट में दैनिक कारोबार वर्तमान में करोड़ो रुपयें में होता है, ये कैश ट्रेडिंग की तुलना में बहुत अधिक है। लेकिन डेरीवेटिव ट्रेडिंग क्या होती है (derivatives meaning in hindi)?

आज इस लेख में हम डेरिवेटिव की बारीकियों पर चर्चा करेंगें और जानेंगे की स्टॉक मार्केट में डेरीवेटिव कैसे काम करता है।

Derivatives Meaning in Hindi with Example 

डेरीवेटिव ट्रेडिंग एक तरह का कॉन्ट्रेक्ट हैं जिनका मूल्य अंडरलाईंग ऐसेट (Underlying Asset) पर निर्भर होता है। आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली संपत्ति स्टॉक, बॉन्ड, मुद्राएं, कमोडिटी और मार्केट इंडेक्स हैं।

इसको अगर बिना समझे किया जाए तो इसमें कई तरह के जोखिम होते है, लेकिन सफलता की किताबों में पुरानी कहावत है, “अधिक जोखिम, अधिक इनाम”।  

ट्रेडिंग के मामले में ऐसा होना आम बात है। डेरिवेटिव का उपयोग समीकरण के दोनों ओर किया जा सकता है, या तो ज्यादा जोखिम  की बात हो या ज्यादा लाभ की, इन दोनो मामलो मे डेरिवेटिव सबसे आगे है। ज्यादा जोखिम लेने की क्षमता सट्टा की परिभाषा बताती है। लेकिन ज्यादा जोखिम  के साथ –साथ बहुत बड़ा लाभ भी होता है।

हालांकि, डेरिवेटिव मौलिक रूप से केवल जोखिम भरा नहीं हैं। वास्तव में, वे दोनों ट्रेडर्स और निवेशकों के लिए यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं कि अस्थिर (volatile or choppy markets) बाजारों में जोखिम कम हो, जो बदले में एक निवेश बीमा के रूप में कार्य करके अपने पोर्टफोलियो रिटर्न को बढ़ा सकते हैं।

इसकी गहराईयों को समझे तो जैसे की आप जानते है कि स्टॉक्स और इंडेक्स का मूल्य बाजार की स्थितियों के अनुसार बदलता रहता है और उसमे ट्रेड करने के कई शेयर बाजार में फायदे और नुकसान है.

लेकिन यहाँ पर अगर हम  डेरिवेटिव कॉन्ट्रेक्ट में प्रवेश करने के पीछे मूल सिद्धांत को समझे तो ये भविष्य में किसी स्टॉक्स या इंडेक्स के मूल्य पर अनुमान लगाकर लाभ अर्जित करना के लिए बेहतर विकल्प होता है फिर चाहे स्टॉक का भाव ऊपर हो या नीचे।

एक और बात जो यहाँ जानना ज़रूरी है वह ये कि डेरिवेटिव का कारोबार ज्यादातर केंद्रीय एक्सचेंजों (central exchanges) या ओवर-द-काउंटर पर किया जाता है। भले ही डेरिवेटिव बाजार के एक बड़े हिस्से में ओटीसी डेरिवेटिव होते हैं, लेकिन वे एक्सचेंजों पर कारोबार किए गए डेरिवेटिव की तुलना में अधिक जोखिम भरे होते हैं। और हम ओटीसी डेरिवेटिव में ट्रेड नहीं करते है।

दूसरा आता है कि डेरीवेटिव कॉन्ट्रैक्ट की वैल्यू अंडरलाइंग एसेट (Underlying Asset) पर निर्भर करती है, जिसका मूल्य बाजार की स्थितियों के अनुसार बदलता रहता है।

यह बेहद जोखिम भरा है क्योंकि स्टॉक्स के मूल्य भावनाओं और अन्य राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक परिवर्तनों के संपर्क में  बने रहने के कारण ऊपर या नीचे होता रहता है।

अवधारणा को स्पष्ट करने के लिए, यहां एक किसान और एक अनाज व्यापारी का उदाहरण दिया गया है। 

मक्के की कीमत में कमी मक्का किसान के लिए नुकसानदायक है क्योंकि वह अपनी फसलों के लिए ज्यादा मुनाफा नहीं कमा सकता है। दूसरी ओर, मक्के की कीमत में वृद्धि अनाज व्यापारी के लिए अच्छी नहीं है क्योंकि उन्हें मक्का किसान को अधिक भुगतान करना पड़ता है जिससे उनकी लागत बढ़ जाएगी।

तो, यह मक्का किसान के हित में है कि कीमत अधिक रहती है जबकि अनाज व्यापारी के लिए यह अच्छा है कि मक्के की कीमत कम है। 

बाजार में मक्के की कीमतों में लगातार हो रहे उतार-चढ़ाव से मक्के का किसान परेशान है। वह 4 महीने के बाद अपनी उपज को 2000 रुपये प्रति क्विंटल के मौजूदा बाजार मूल्य पर बेचने की उम्मीद करता है। हालांकि, इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि 4 महीने के बाद मक्के की कीमत कम नहीं होगी। 

इस जोखिम से बचने के लिए, मक्का किसान अनाज व्यापारी के साथ एक कॉन्ट्रेक्ट करता है कि वह 4 महीने के बाद अपनी उपज को वर्तमान बाजार मूल्य 2000 रुपये पर बेचेगा, भले ही उस समय कीमत कुछ भी हो। 

इसलिए, यदि 4 महीने के बाद मक्के की कीमत 1970 रुपये तक गिर जाती है या 2020 रुपये तक बढ़ जाती है, तो किसान अपनी उपज को 2000 रुपये प्रति क्विंटल पर बेचने के लिए बाध्य होगा और अनाज व्यापारी उसे खरीदने के लिए बाध्य होंगा। 

यह उदाहरण केवल यह बताता है कि डेरिवेटिव कॉन्ट्रेक्ट कैसे काम करता है। इस स्थिति में अंडरलाईंग ऐसेट(Underlying Asset)  मक्के की उपज (वस्तु) है।


डेरिवेटिव के प्रकार 

डेरिवेटिव कॉन्ट्रेक्ट चार प्रकार के होते हैं – फारवर्ड, फ्यूचर, ऑप्शन और स्वैप। हालांकि, फिलहाल, आइए पहले तीन पर ध्यान दें। स्वैप जटिल कॉन्ट्रेक्ट हैं जो शेयर बाजारों में ट्रेड के लिए उपलब्ध नहीं हैं।

1. फॉरवर्ड कॉन्ट्रेक्ट

फॉरवर्ड, फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स की तरह होते हैं जिसमें धारक कॉन्ट्रेक्ट को पूरा करने के लिए बाध्य होता है। फॉरवर्ड ऐसे कॉन्ट्रेक्ट हैं, जो मानकीकृत(standardized) नहीं हैं।

स्टॉक एक्सचेंज में इनका कारोबार नहीं होता है। ये ओवर-द-काउंटर में ट्रेड होते हैं।

इस प्रकार के कॉन्ट्रेक्ट दो पक्षों के बीच होते है जिसमें पार्टियों के बीच समझौता भविष्य में किसी निश्चित तिथि पर होता है।

कीमत पहले से तय होती है और उसी कीमत पर भविष्य में डील की जाती है। इसलिए जब किसी कंपनी के स्टॉक्स को खरीदने या बेचने के लिए दो पक्षों के बीच इस तरह के भविष्य के समझौते होते हैं तो इसे एक फॉरवर्ड्स कॉन्ट्रेक्ट कहा जाता है। 


2. फ्यूचर्स कॉन्ट्रेक्ट

फ्यूचर्स मानकीकृत (standardized) कॉन्ट्रेक्ट हैं फ्यूचर्स ऐसे कॉन्ट्रेक्ट हैं जो भविष्य में एक किसी स्टॉक को एक निश्चित राशि के लिए एक निर्दिष्ट समय पर स्टॉक के एक लोट या उससे ज्यादा को खरीदने या बेचने के लिए एक समझौता करते हैं।

डेरिवेटिव बाजार में, आप एक शेयर के लिए कॉन्ट्रेक्ट नहीं खरीद सकते। यह हमेशा लोट में होता है और पहले से निश्चित समाप्ति तिथि के लिए होता है। इन कॉन्ट्रेक्ट का स्टॉक एक्सचेंज में कारोबार होता है। फ्यूचर्स कॉन्ट्रेक्ट का मूल्य समाप्ति तिथि तक बाजार की गतिविधियों के अनुसार बदलता रहता है।


Option Trading in Hindi 

ऑप्शन डेरिवेटिव कॉन्ट्रेक्ट हैं जो खरीदार को एक निश्चित अवधि के दौरान निश्चित मूल्य पर किसी स्टॉक को खरीदने/बेचने का अधिकार देते हैं।

खरीदार ऑप्शन का प्रयोग करने के लिए किसी भी दायित्व के अधीन नहीं होता है एंव ऑप्शन विक्रेता को ऑप्शन राईटर के रूप में भी जाना जाता है।

निश्चित मूल्य को स्ट्राइक मूल्य के रूप में जाना जाता है और आप ऑप्शन अवधि की समाप्ति से पहले किसी भी समय ऑप्शन का प्रयोग कर सकते हैं।

एक बायर जो प्रीमियम देकर स्टॉक मार्केट पोजीशन लेता है उसे ऑप्शन ट्रेडिंग के फ़ायदे में से सबसे बड़ा फायदा कॉन्ट्रैक्ट को एक्सरसाइज या न करने का अवसर मिलता है। एक बायर मार्केट में ट्रेड एक्सरसाइज करने के बाध्य नहीं होता लेकिन एक सही पोजीशन और ऑप्शन में मुनाफा कमाने के लिए ज़रूरी है कि एक शुरूआती ट्रेडर ऑप्शन ट्रेडिंग टिप्स (option trading tips in hindi) के अनुसार ही मार्केट में ट्रेड करें।


स्वैप कॉन्ट्रेक्ट

ऊपर दिए सभी विभिन्न प्रकार के डेरिवेटिव कॉन्ट्रेक्ट में से, स्वैप कॉन्ट्रेक्ट सबसे जटिल हैं। ये कॉन्ट्रेक्ट दोनों पक्षों के बीच निजी तौर पर किए जाते हैं।

पार्टियां एक पूर्व निर्धारित फॉर्मूला तय करती हैं और भविष्य में फॉर्मूले के अनुसार अपने कैश फ्लो का आदान-प्रदान करती हैं। स्वैप कॉन्ट्रेक्ट में जोखिम पैरामीटर अधिक होता है ये अनुबंध किसी भी एक्सचेंज द्वारा विनियमित नहीं होते हैं और बिचौलियों के माध्यम से कारोबार करते हैं। 

इक्विटी आम तौर पर निवेश करने के साधन होते हैं जबकि डेरिवेटिव का मतलब उन तरीको में से है जो स्पेकुलटिंग (speculating) या हेजिंग (Hedging meaning in Hindi) उद्देश्यों के लिए उपयोग किए जाते हैं। अब जब आप जानते हैं कि डेरिवेटिव मार्केट क्या है, तो आइए चर्चा करें कि डेरिवेटिव मार्केट में ट्रेड कैसे करें।


डेरिवेटिव में ट्रेड कैसे करें?

डेरीवेटिव के मतलब को समझने के बाद ज़रूरी है की अब ये समझा जाए की इसमें ट्रेड कैसे करे। ट्रेडिंग से पहले आपको डेरिवेटिव बाजारों के कामकाज को समझने की जरूरत है। डेरिवेटिव में लागू रणनीतियां इक्विटी ट्रेडिंग से बिल्कुल अलग हैं। 

आपके पास एक सक्रिय ट्रेडिंग खाता होना चाहिए जो डेरिवेटिव ट्रेडिंग की अनुमति देता हो। यदि आप किसी ब्रोकर की सेवाओं का उपयोग कर रहे हैं, तो आप ऑनलाइन ही डेरिवेटिव ट्रेड में ट्रेड कर कर सकते हैं।

एक रिटेल ट्रेडर डेरिवेटिव मार्केट में सिर्फ फ्यूचर और ऑप्शन में ही ट्रेड कर सकते है। आइए हम फ्यूचर और ऑप्शन में अंतर को विस्तार से समझते है।

फ्यूचर ट्रेडिंग कैसे करें?

अब जब आप जानते हैं कि फ्यूचर ट्रेडिंग क्या है तो आइए समझते हैं कि फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट में कैसे ट्रेड करें।

फ्यूचर्स ट्रेडिंग स्टॉक खरीदने या बेचने के बजाय कीमतों में उतार-चढ़ाव के आधार पर की जाती है। आप प्रत्येक स्टॉक के फ्यूचर में ट्रेड नही कर सकते है ये एक्सचेंज निर्णय करता है कि किस स्टॉक के फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट बाजार मे ट्रेड करने के लिए मौजूद होंगे। 

जैसे की अगर आप निफ़्टी और बैंक निफ़्टी जो स्टॉक मार्केट इंडेक्स है, अगर आप इनमे ट्रेड करना चाहते है तो आप इसमें फ्यूचर या ऑप्शन ट्रेडिंग के जरिये हे ट्रेड कर सकते है। जानते है कि निफ्टी और बैंक निफ्टी भारतीय बाजार के इंडेक्स है, जो कि बहुत सारे स्टॉक्स को मिलाकर बनाये जाते है। आप  निफ्टी और बैंक निफ्टी इंडेक्स मे सिर्फ फ्यूचर और ऑप्शन ट्रेडिंग के जरिए ही ट्रेड कर सकते है। 

एक उदाहरण के साथ समझते है, मानलो अभी कोरोना काल चल रहा है और आपको लगता है कि आने बाले एक सप्ताह या महीने मे मार्केट क्रैश होने वाला है तब आप इस स्थिति में किसी भी स्टॉक या इंडेक्स का फ्यूचर बेच सकते है और अगर मार्केट आपके अनुमान के अनुसार नीचे जाता है तब भी आप इससे लाभ कमा सकते है।


ऑप्शन ट्रेडिंग कैसे करें?

ऑप्शन ट्रेडिंग स्टॉक ट्रेडिंग के समान ही कार्य करते हैं। हालांकि, ऑप्शन ट्रेडिंग करने का तरीका बहुत अलग हैं। ऑप्शन ट्रेडिंग में दो पार्टी शामिल होती है, जिनके एक ऑप्शन खरीददार होता है और दूसरा ऑप्शन सेलर होता है।

ऑप्शन कैसे खरीदें?

जब आप एक ऑप्शन खरीदते हैं, तो आपको ऑप्शन खरीददार(Buyer) कहा जाता है। जब भी हम मार्केट में ट्रेड करते है तो सिर्फ तीन संम्भावना होती है, कोई स्टॉक नीचे जायेगा, ऊपर जायेगा या फिर साईड्वेज रहेगा। 

  1. ऊपर जाने की संभावना :- अब अगर आपको लगता है कि कोई स्टॉक या इंडेक्स किसी निश्चित तारीख से पहले ऊपर जायेगा, तब आप कॉल ऑप्शन खरीद सकते है। कॉल ऑप्शन में अगर स्टॉक का प्राइस ऊपर जाता है तो आप उससे मुनाफा कमा सकते है, दूसरी तरफ अगर स्टॉक का दाम निचे की और या सिडेवेस होता है तब भी आप नुक्सान को प्रीमियम तक सीमित रख एग्जिट कर सकते है।
  2. नीचे जाने की संभावना :-  अगर आप किसी स्टॉक को लेकर बेयरिश है तो आप पुट ऑप्शन खरीद सकते है जिसमे आप किसी भी स्टॉक को बेचने का अधिकार प्राप्त कर सकते है। अगर स्टॉक का दाम निचे गिरता है तो आप उसे बेचकर लाभ कमा सकते है और दूसरी ओर स्टॉक का दाम अगर बढ़ता है तो अपनी पोजीशन को एग्जिट कर सकते है, हालांकि यहाँ पर आपको प्रीमियम का नुक्सान उठाना पड़ेगा।

ऑप्शन कैसे बेचे?

ऑप्शन सेलर के लाभ कमाने की प्रवृति ऑप्शन खरीददार के मुकाबले बहुत ज्यादा होती है। लेकिन ऑप्शन सेलर बनने के लिए आपको ऑप्शन खरीददार के मुकाबले बहुत ज्यादा पैसो की जरुरत होती है तभी आप ऑप्शन सेल कर सकते है। 

  1. ऊपर जाने की संभावना :- यदि  आपको लगता है कि कोई स्टॉक या इंडेक्स किसी निश्चित तारीख से पहले ऊपर जायेगा, तब आपको पुट ऑप्शन बेंचना है। और अगर वह स्टॉक या इंडेक्स ऊपर जायेगा तो आपको लाभ होगा। साथ ही अगर बह साईड्वेज भी रहता है तब भी आपको लाभ होगा।
  2. नीचे जाने की संभावना :- यदि  आपको लगता है कि कोई स्टॉक या इंडेक्स किसी निश्चित तारीख से पहले नीचे जायेगा, तव आपको कॉल ऑप्शन बेंचना है। और अगर वह स्टॉक या इंडेक्स नीचे जायेगा तो आपको लाभ होगा। साथ ही अगर बह साईड्वेज भी रहता है तव भी आपको लाभ ही होगा।

फ्यूचर और ऑप्शन ट्रेडिंग, दोनों में ही भविष्य में ट्रेड को सेटल किया जाता है और इसलिए मार्केट में आने वाले समय के जोखिम और रिटर्न का आंकलन करना भी बहुत ज़रूरी होता है। इसके लिए आप इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी (IV in option chain in hindi) की जानकारी प्राप्त कर सही ट्रेड पोजीशन ले सकते है।

इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी आपको भविष्य में आने वाले उतारर चढ़ाव की जानकारी प्रदान करता है जिससे आप सही रणनीति का उपयोग कर मार्केट कंडीशन के अनुसान ट्रेड कर सकते है। इसके साथ ऑप्शन चेन (what is option chain in hindi) में आप अन्य कारकों का इस्तेमाल कर किसी भी अन्तर्निहित परिसम्पति की वैल्यू की जानकारी प्राप्त कर सकते है।


डेरीवेटिव ट्रेडिंग पार्टिसिपेंट 

डेरिवेटिव ट्रेडिंग में चार प्रतिभागी शामिल हैं। वे इस प्रकार हैं-

1.हेजर्स – ये ट्रेडर्स भविष्य के मूल्य परिवर्तनों से जुड़े जोखिमों को कम करने के लिए डेरिवेटिव बाजार में निवेश करते हैं। जो निवेशक जोखिम को हेज करने के लिए जाने जाते हैं उन्हें हेजर्स कहा जाता है। इसलिए हेजिंग की प्रक्रिया जोखिम को कम करने के अलावा और कुछ नहीं है। हेजिंग मौजूदा बाजार स्थितियों के आधार पर जोखिम  को कम करने में मदद करती है। 

आइए हम एक उदाहरण के साथ समझते हैं, मान लीजिए कि एक निवेशक XYZ कंपनी में 1000 शेयर लंबी अवधि के लिए खरीदता है, लेकिन वह जानता की मार्केट में बहुत ज्यादा उतार –चढ़ाव की स्थिती है इस लिए जोखिम से बचने के लिए जब बाजार में उतार-चढ़ाव होता है, तो उसे हेज बनाने के लिए उसी कंपनी के फ्यूचर या ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट में पोजिशन बनानी होती है। 

2. स्पेकुलेटर – स्पेकुलेटर वे ट्रेडर हैं जो बिना किसी स्टॉक की जांच किए किसी और की सलाह पर निवेश करते हैं और उनका मूल कारक अधिकतम लाभ के पक्ष में होता है।

डेरिवेटिव निवेश के माध्यम से अधिकतम लाभ कमाना एकमात्र मंत्र है। हेजर्स के विपरीत, वे उच्च जोखिम लेने से डरते नहीं हैं जो कि दुर्भाग्यपूर्ण बाजार स्थितियों के दौरान अधिकतम रिटर्न और कभी-कभी भारी नुकसान सुनिश्चित करता है।

स्पेकुलेटर को अल्पकालिक ट्रेड के साथ अधिकतम लाभ कमाने की उम्मीद है। इसे प्राप्त करने के लिए, ज्यादा जोखिम  लेते है और अभी मार्केट में ज्यादातर स्पेकुलेटर ही मौजूद यही कारण है कि 95% ट्रेडर्स अपना पैसा गंवा देते है। 

3. आर्बिट्राजर्स – दो या दो से अधिक बाजारों में कीमतों के अंतर का फायदा उठाने के लिए ट्रेडर्स द्वारा अक्सर आर्बिट्रेज को अपनाया जाता है। उदाहरण के लिए, एक ट्रेडर एक बाजार में स्टॉक खरीदता है और साथ ही इसे दूसरे बाजार में अधिक कीमत पर बेचता है। यह वित्तीय बाजारों (financial markets) में एक आम बात है।

आर्बिट्राजर्स थोड़ा अलग तरीके से और तेजी से कार्य करते हैं और न्यूनतम जोखिम के साथ बेहतर लाभ उत्पन्न करने के लिए तत्काल निर्णय लेने की लेते हैं। जब आर्बिट्राजर्स को अवसर उपलब्ध होते हैं तो बह तुरंत उन स्टॉक्स को खरीदते या बेचते हैं। वे केवल तभी ट्रेड करते हैं जब जोखिम प्रोफ़ाइल कम होने पर भी ज्यादा पैसा कमाने का मौका मिलता है। 

4. मार्जिन ट्रेडर्स – डेरिवेटिव ट्रेडिंग में, एक मार्जिन एक प्रारंभिक राशि है जो एक ट्रेडर को स्टॉक ब्रोकर को देनी होती है। यह ट्रेडर की कुल राशि का कुछ प्रतिशत होता है। मार्जिन ट्रेडर्स में डे ट्रेडर, ऑप्शन ट्रेडर और फ्यूचर ट्रेडर शामिल होते है। 

आइए हम एक उदाहरण के साथ समझते हैं, मान लीजिए कि एक एक डे ट्रेडर एक्सवाईजेड कंपनी के 1000 शेयर 100 रुपयें के भाव में खरीदता है, जिसमें उसको ब्रोकर की तरफ से 5x मार्जिन मिला क्योकि उसने बह स्टॉक्स इंट्राडे के लिए खरीदे है इस हिसाव से उसका सिर्फ 20 हजार का ही केपिटल इस्तेमाल होगा।

आसान शब्दों में कहे तो अगर आपको ब्रोकर के तरफ से 5x मार्जिन मिल रहा है और आपके पास 10 हजार का केपिटल है तो आप उस केपिटल से 50 हजार रुपये के बैल्यु तक का ट्रेड कर सकते है।


डेरिवेटिव ट्रेडिंग प्लेटफोर्म

डेरिवेटिव ट्रेडिंग ही नही अगर आप इक्विटी में भी ट्रेड करते है तो आपको एक ट्रेडिंग प्लेटफोर्म की जरुरत होती है जहां किसी स्टॉक्स में ट्रेड करने के ऑर्डर लगा सके और अपनी सारी ट्रेडिंग गतिवितिंया कर सके। ये ट्रेडिंग प्लेटफोर्म हमें ब्रोकर उपलब्ध कराते है जिससे हम आसानी से ट्रेड कर सके जैसे –जैरोधा, फ़ायर्स आदि।

मार्केट में बहुत सारे ब्रोकर है इसलिए आपके लिए ये जरुरी हो जाता है कि डेरिवेटिव ट्रेडिंग के लिए सही ब्रोकर का चुनाव करे। ब्रोकर को चुनते समय कुछ बातों का ध्यान रखे।

  • सबसे पहले ये सुनिश्चित करले कि बह ब्रोकर डेरिवेटिव ट्रेडिंग करने की अनुमति देता है।
  • कम से कम ब्रोकरेज चार्ज करता हो।
  • जिसका ट्रेडिंग प्लेटफोर्म बहुत ही सिंपल और नई तकनीक के साथ हो।
  • जिसका सपोर्ट सिस्टम अच्छा हो।
  • फ्यूचर और ऑप्शन के लिए शेयर मार्केट टिप्स प्रदान करता हो

डेरिवेटिव ट्रेडिंग कैसे सीखें?

ये तो बात हुए की डेरीवेटिव ट्रेडिंग क्या होती है लेकिन इसे करने के लिए ज़रूरी है की आप इसके सही समझ और ज्ञान के साथ ही ट्रेड करे। तो यहाँ पर सबसे ज़रूरी सवाल की ट्रेडिंग कैसे सीखें?

इसके लिए आप ऑनलाइन एप, Stockpathshala डाउनलोड कर सकते है जिसमे ऑडियो, वीडियो और टेक्स्ट फॉर्म में बहुत आसान भाषा में स्टॉक मार्केट के बेसिक और एडवांस कांसेप्ट समझाए गए है

तो स्टॉक मार्केट में निवेश करने से पहले जाने उसकी बारीकियों को, अभी Stock Pathshala App डाउनलोड करे

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