PE Ratio in Hindi

pe ratio in hindi

शेयर बाजार कभी भी किसी कंपनी में निवेश करना हो तो ज़रूरी होता है उसकी वैल्यू की जानकारी लेना और जब बात वैल्यूएशन की आती है तो उसके लिए PE रेश्यो का महत्त्व बढ़ जाता है। यहाँ पर PE रेश्यो एक तरह की यूनिट की तरह काम करता है। आज इस लेख में जानेंगे PE Ratio in Hindi और किस तरह से ये आपको एक कंपनी का चयन करने के मदद करता है। 

PEरेश्यो निवेशकों को कंपनी के आय की तुलना में कंपनी के शेयर के मार्केट वैल्यू को मापने में मदद करता है। आसान शब्दों में , आप जान पाते हैं की कंपनी पिछले आय और भविष्य के आय के आधार पर कितना भुगतान करेगी। 

तो अगर हम जानना छह रहे की share market me invest kaise kare तो एक सही कंपनी का चयन करने के लिए जानते है PE ratio in Hindi और किस तरह से इसकी गणना की जाती है

PE Ratio Meaning in Hindi 

PE रेश्यो आपको कंपनी के स्टॉक प्राइस और एअर्निंग पर शेयर (EPS) के बीच का सम्बन्ध बताता है।  

अगर इसके मीनिंग को समझे तो ये रेश्यो आपको बताता है कि आप कंपनी के एक यूनिट एअर्निंग (earning) के लिए कितना भुगतान करना होगा

साथ ही इस रेश्यो का विश्लेषण कर आप कंपनी की वैल्यूएशन (overvalued and undervalued) और आंतरिक वैल्यू (intrinsic value in share meaning in hindi) की जानकारी प्राप्त कर सकते है जिसके आधार पर आप होने वाले रिटर्न की जानकारी प्राप्त कर सकते है

सरल भाषा में PE ratio एक निवेशक को जानकारी देता है कि कंपनी कितनी लाभदायक है और आने वाले समय में कितना रिटर्न दे सकती है


PE Ratio फॉर्मूला

PE Ratio की गणना करने का फार्मूला इस प्रकार है।

PE Ratio = Market Value Per Share / Earnings Per Share 

यहाँ पर Earning Per Share को निकलने के लिए आपको कंपनी की नेट इनकम का भाग आउटस्टैंडिंग शेयर से करना होगा:

EPS= Net Income of Company/Total Outstanding Share

इसके अलावा P/E ratio की गणना आप निम्नलिखित फॉर्मूला से भी कर सकते है:

P/E Ratio = Market Capitalization / Total Net Earnings 

हालांकि ये दोनों फॉर्मूला एक ही तरह की जानकारी प्रदान करते है लेकिन दोनों तरह से की हुए गणना से पी/ई की वैल्यू अलग होती है। इसका कारण है अलग-अलग तरह से कंपनी के EPS और मार्केट कैप की गणना।

एक तरफ जहाँ EPS एवरेज शेयर्स के नंबर के आधार पर निकली जाती है दूसरी ओर मार्केट कैप को निकलने के लिए अलग-अलग समय के शेयर वैल्यू की जानकारी लेकर कैलकुलेट किया जाता है


PE Ratio के प्रकार

अब बात आती है की किस आधार पर PE Ratio निकला जाता है, उसके आधार पर ये दो तरह के होते है:

  • Trailing PE Ratio: जैसे की नाम से पता चल रहा है, इसकी गणना कंपनी के पिछले कुछ वर्षो के EPS के आधार पर निकली जाती है, यानी की ये कंपनी के बीते हुए वर्षो की ग्रोथ का प्रदर्शन करता है। इसकी जानकारी आप कंपनी की बैलेंस शीट (balance sheet in hindi) से ले सकते है।
  • Forward PE Ratio: अब बात जब भविष्य जानकारी की आये तो उसके लिए फॉरवर्ड PE Ratio निकला जाता है जिसके लिए आने वाले समय में कंपनी के EPS का अनुमान लगाकर उसका PE Ratio निकला जाता है।   

अब जानते है कि PE Ratio के आधार पर आप किस तरह से कंपनी की वैल्यूएशन कर सकते है, उसके लिए आपको पहले EPS की जानकारी प्राप्त करनी होगी, जिसके लिए दो तरह से गणना कर सकते है:

  • बेसिक EPS: इसके लिए कंपनी के पिछले 12 महीने की आय को एवरेज आउटस्टैंडिंग शेयर से भाग करके निकला जा सकता है
  • जस्टीफ़ाइड EPS (Justified EPS): इसमें ये गणना की जाती है कि एक निवेशक कम्पनी के डिविडेंड (dividend meaning in hindi), ग्रोथ रेट, और रेट ऑफ़ रिटर्न के आधार पर कितना भुगतान कर रहे है। इसकी गणना के लिए आप निम्नलिखित फॉर्मूला का इस्तेमाल कर सकते है:

Justified P/E = Dividend Payout Ratio / R – G ,

जहाँ R = Required Rate of Return
G = Sustainable Growth Rate  

दोनों तरह के EPS की गणना कर और उनकी आपस में तुलना कर कंपनी की वैल्यूएशन की जानकारी प्राप्त कर सकते है। 

यहाँ पर अगर बेसिक EPS की वैल्यू जस्टीफ़ाइड EPS से ज़्यादा है तो इसका अर्थ है की कंपनी अंडर वैल्यूड (undervalued) है और अगर कंपनी के फंडामेंटल मजबूत है तो आने वाले समय में ये आपको एक अच्छा मुनाफा दे सकती है। 


PE Ratio की गणना 

अभी तक हमने PE रेश्यो के महत्व को समझा और जाना कि किस तरह से इसकी गणना करने के लिए आपको अलग-अलग फॉर्मूला दिए गए है, अब जानते है की किस तरह से आप इसकी गणना कर निवेश करने का एक सही निर्णय ले सकते है

आइए, इसे एक उदाहरण से समझते हैं:

मान लेते है की किसी कंपनी का शेयर प्राइस ₹2000 है और उसका EPS ₹200 हैं, तो यहाँ पर PE ratio की वैल्यू:

PE Ratio: 2000/200 
=10 

इसका तात्पर्य ये है कि एक निवेशक कंपनी की ₹1 आय के लिए ₹10 देने के लिए तैयार है या फिर कहा जा सकता है कि की गई इन्वेस्टमेंट से रिटर्न प्राप्त करने में लगभग 10 साल का वक़्त लगेगा

एक अकेली कंपनी का PE ratio आपको कुछ अधिक जानकारी नहीं देता है। तो कभी भी आपको किसी कंपनी में निवेश करना हो तो ज़रूरी है कि आप एक ही सेक्टर की दो या दो से ज़्यादा कंपनी का PE रेश्यो निकलकर उसमे निवेश करने का निर्णय ले।

इसे समझने के लिए शेयर मार्केट का गणित को समझना ज़रूरी है जो नीचे दिए गए उदाहरण में बताया गया है:

मान लीजिए की एक स्टॉक A की प्राइस 330 रुपए है और स्टॉक B की प्राइस 495 रूपए है। और स्टॉक A की प्रति शेयर आय 22 रूपए है और स्टॉक B कीमत प्रति शेयर 17 रुपए है।

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कंपनी B जिसका PE कंपनी A से ज़्यादा है यानी की B कंपनी की ₹1 आय की ग्रोथ पर आप A की तुलना में ज़्यादा इन्वेस्ट कर रहे है। कहा जा सकता है की कंपनी ओवर वैल्यूड है और इसमें अच्छा रिटर्न प्राप्त करने के लिए आपको ज़्यादा वर्षो का समय लगेगा। साथ ही ज़्यादा PE का मतलब की कंपनी ग्रोथ फेज में है और इसलिए इसमें जोखिम भी ज़्यादा है।यहाँ पर अब आप आंकलन कर सकते है कि आपको किस कंपनी में निवेश करना ज़्यादा फायदेमंद होगा

लेकिन दूसरी तरफ क्या कंपनी का कम PE निवेश करने के लिए हमेशा अच्छा माना जाता है?

खैर वो निर्भर करता है कि कंपनी फ़ण्डामेंटली कितनी मजबूत है जिसके लिए आपको कंपनी के प्रॉफिट, डेब्ट, और YoY परफॉरमेंस का आंकलन करना होगा

यहाँ पर अगर कंपनी का PE कम है तो इसका अर्थ यही की कंपनी की अभी की और आने वाले समय का प्रदर्शन कमज़ोर रहने वाला है, लेकिन एक फंडामेंटल स्ट्रांग कंपनी का लौ PE आपको लाभ कमाने का एक अच्छा अवसर प्रदान करता है।  

यहां पर ये जानना ज़रूरी है कि किसी भी कंपनी का PE उसे सेक्टर में मौजूदा दूसरी कंपनी के साथ किया जाता है


PE रेश्यो की सीमाएं

PE रेश्यो आपको कंपनी की वैल्यू की जानकारी देता है लेकिन साथ में ही क्या ये एक निवेशक के लिए सही स्टॉक चुनने का मूल मंत्र हो सकता है? हर एक यूनिट की तरह इसमें भी कई चीज़ो का पता न होने के कारण एक गलत चुनाव कर सकते है

इसलिए कहा जाता है कि किसी भी कंपनी का मौलिक विश्लेषण (fundamental analysis in hindi) करने के लिए ज़रूरी है कि आप एक से ज़्यादा बातो का ध्यान रख उसमे निवेश करें

यहाँ जाने की PE रेश्यो की क्या सीमाएं है और कहा पर वह आपको एक गलत राय दे सकता है:

  1. एक नई कंपनी जिसने अभी तक किसी तरह का कोई प्रॉफिट रिकॉर्ड नहीं किया है वह पर PE रेश्यो की गणना करना कोई महत्व नहीं रखता है, यहाँ पर PE रेश्यो की वैल्यू सेक्टर में मौजूदा दूसरी कंपनी के अनुसार ज़्यादातर ज़्यादा ही रहती है और इसलिए इस आधार पर वह किसी भी राय लेने में मदद नहीं करता है
  2. PE रेश्यो कंपनी की आय और मार्केट प्राइस के आधार पर निकली जाती है, तो यहाँ पर जिन कंपनी पर किसी तरह का डेब्ट होता है तो वहाँ पर PE रेश्यो की गणना का महत्त्व कम हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है कोई डेब्ट के कारण कंपनी इंटरेस्ट का खर्चा बढ़ता है जिसकी वजह से EPS की वैल्यू घटने लगती है, जिसका सीधा असर PE की गणना पर पड़ता है।
  3. इसके अलावा एक निवेशक ऐसी कंपनी में निवेश करना चाहता हो जिसका केश फ्लो समय के साथ बढ़ता रहे लेकिन अगर PE ratio को देखा जाये तो ये कंपनी के केश फ्लो पर निर्भर नहीं करता

निष्कर्ष 

PE रेश्यो अन्य कारक पर भी निर्भर करता है जैसेकि कंपनी के विलयन (Merger) और अधिग्रहण (Acquisition) की घोषणा आदि, जिसका सीधा असर कंपनी के PE रेश्यो की वैल्यू पर पड़ती है। इसलिए यह आवश्यक है की निवेश करने से पहले कंपनी से जुड़े सभी पहलूओं की जांच करें।

स्टॉक मार्केट में निवेश करने के लिए काफी नंबर और डेटा का विश्लेषण करना अतिआवश्यक होता है और इसलिए ज़रूरी है सही समझ और जानकारी। इसके लिए आप स्टॉक मार्केट की किताबे (share market books in hindi) पद सकते है या अपनी सुविधा के अनुसार स्टॉक मार्केट कोर्स का चयन कर निवेश करने का एक सही निर्णय ले सकते है।

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